मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज और उनका जीवन, जानें

छत्रपति शिवाजी महाराज वीर थे और भारतीय इतिहास में उनका व्यक्तित्व बेदाग रहा। शिवाजी महाराज योद्धा राजा थे और अपनी बहादुरी, रणनीति और प्रशासनिक कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने हमेशा स्वराज्य और मराठा विरासत पर ध्यान केंद्रित किया।

वह 96 मराठा कुलों के वंशज थे, जिन्हें ‘क्षत्रिय’ या बहादुर सेनानियों के रूप में जाना जाता था। इस लेख के माध्यम से हम शिवाजी महाराज के जीवन के बारे में जानेंगे। 

 

छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन 

सन 1630 में 19 फरवरी को पुणे के शिवनेरी किले में जन्मे शिवाजी शाहजी भोसले और जीजा बाई के पुत्र थे। उनका पालन-पोषण पूना में उनकी मां और ब्राह्मण दादाजी कोंडा-देव की देखरेख में हुआ, जिन्होंने उन्हें एक विशेष सैनिक और एक कुशल प्रशासक बनाया।

उनका प्रशासन काफी हद तक दक्कन की प्रशासनिक प्रथाओं से प्रभावित था। उन्होंने आठ मंत्रियों को नियुक्त किया, जिन्हें ‘अष्टप्रधान’ कहा जाता था, जो प्रशासनिक मामलों में उनकी सहायता करते थे। 

शिवाजी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएं

-तोरण पर विजय: यह मराठों के सरदार के रूप में शिवाजी द्वारा कब्जा किया गया पहला किला था, जिसने 16 साल की उम्र में उनमें वीरता और दृढ़ संकल्प के उनके शासक गुणों की नींव रखी।

इस विजय ने उन्हें  रायगढ़ और प्रतापगढ़ जैसे दूसरे राज्यों पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया। इन विजयों से बीजापुर का सुल्तान घबरा गया था और उसने शिवाजी के पिता शाहजी को कारागार में डाल दिया।

1659 ई. में शिवाजी ने फिर से बीजापुर पर आक्रमण करने का प्रयास किया, तब बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी को पकड़ने के लिए अपने सेनापति अफजल खान को भेजा, लेकिन शिवाजी भागने में सफल रहे और बाघनख या बाघ के पंजे नामक घातक हथियार से उन्हें मार डाला।

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अंततः 1662 में बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के साथ शांति संधि की और उन्हें अपने जीते हुए क्षेत्रों का स्वतंत्र शासक बना दिया।

-कोंडाना किले पर विजय: यह नीलकंठ राव के नियंत्रण में था। यह मराठा शासक शिवाजी के सेनापति तानाजी मालुसरे और जय सिंह प्रथम के अधीन किले के रक्षक उदयभान राठौड़ के बीच लड़ा गया था।

 

-शिवाजी का राज्याभिषेक: 1674 ई. में शिवाजी ने स्वयं को मराठा साम्राज्य का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया था और रायगढ़ में छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक किया गया। उनका राज्याभिषेक उन लोगों के उदय का प्रतीक था, जो मुगलों की विरासत को चुनौती देते थे। राज्याभिषेक के बाद उन्हें नवगठित राज्य हिंदवी स्वराज्य के ‘हैदव धर्मोद्धारक’ (हिंदू आस्था के रक्षक) की उपाधि मिली थी। यह राज्याभिषेक भू-राजस्व एकत्र करने और लोगों पर कर लगाने का वैध अधिकार देता था।

-गोलकुंडा के कुतुब शाही शासकों के साथ गठबंधन: इस गठबंधन की मदद से उन्होंने बीजापुर कर्नाटक (1676-79 ई.) में अभियान का नेतृत्व किया और जिंजी (जिंगी), वेल्लोर और कर्नाटक के कई किलों पर विजय प्राप्त की।

शिवाजी का प्रशासन

-पेशवा सबसे महत्वपूर्ण मंत्री थे, जो वित्त और सामान्य प्रशासन की देखभाल करते थे।-सेनापति (साड़ी-ए-नौबत) प्रमुख मराठा सरदारों में से एक थे, जो मूल रूप से सम्मानजनक पद पर नियुक्त थे।-मजूमदार एक अकाउंटेंट थे।-वेकनाविस वह है, जो खुफिया, पद और घरेलू मामलों की देखभाल करते थे।-सुर्नवीस या चिटनीस राजा को उसके पत्र-व्यवहार में सहायता करते थे।-दबीर समारोहों के स्वामी थे और विदेशी मामलों से निपटने में राजा की मदद करते थे।-नय्याधीश और पंडितराव न्याय और धर्मार्थ अनुदान के प्रभारी थे।-वह भूमि पर कर लगाते थे, जो भू-राजस्व का एक-चौथाई अर्थात चौथई होता था।-वह न केवल एक योग्य सेनापति, कुशल रणनीतिज्ञ और चतुर कूटनीतिज्ञ साबित हुए, बल्कि उन्होंने देशमुख की शक्ति पर अंकुश लगाकर एक मजबूत राज्य की नींव भी रखी।

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Source: HIS Education

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