भारत की पहली महिला वकील कौन थी, जानें

भारत में वर्तमान में महिलाएं हर क्षेत्र में अपना नाम दर्ज रहा ही हैं। हर पेशे में आपको महिलाओं की भागीदारी देखने को मिल जाएगी। हालांकि, एक समय ऐसा भी था, जब महिलाओं को घरों से बाहर निकलने नहीं दिया जाता था।

हालांकि, तब भी कुछ महिलाओं ने सामाज की बेड़ियों को तोड़ते हुए आगे निकलकर अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज कराया था। क्या आपको पता है कि भारत की पहली महिला वकील कौन थी। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस बारे में जानेंगे। 

 

कौन थीं भारत की पहली महिला वकील 

भारत की पहली महिला वकील के बारे में बात करें, तो वह कोर्नेलिया सोराबजी थी। उनका जन्म नवंबर, 1866 में हुआ था, जब भारत में ब्रिटिश राज चल रहा था। कोर्नेलिया के माता-पिता पारसी थी, हालांकि उन्होंने बाद में ईसाई धर्म अपना लिया था। 

बांबे यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाली पहली महिला

कोर्नेलिया भारत में ब्रिटिश राज से काफी प्रभावित थी। उनका यह मानना था कि भविष्य में यदि कामयाबी पानी है, तो इंग्लैंड जाना होगा। वह शुरू से ही पढ़ाई में अच्छी थी, ऐसे में उन्होंने बांबे यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। इसके साथ ही वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बन गई थी। 

 

ऑक्सफॉर्ड में पढ़ने वाली पहली भारतीय महिला

उन्होंने बांबे में पढ़ते हुए इंग्लैंड के लिए स्कॉलरशिप भी हासिल की और यहां से वह ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए चली गई। उन्होंने जब वहां पर दाखिला लिया, तो वह ऑक्सफॉर्ड में पढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बन गई थीं। 

See also  JoSAA Advisory 2023: Round 2 seat allocation results announced, get direct link here

 

भारत और ब्रिटेन में नहीं थी वकालत की अनुमति

कोर्नेलिया जब अपनी पढ़ाई पूरी कर भारत लौटी, तो उन्होंने बैरिस्टर के तौर पर अपनी प्रैक्टिस करने का निर्णय लिया, लेकिन उस समय भारत और ब्रिटेन में महिलाओं को वकील के तौर पर प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं थी। ऐसे में वह ऐसा नहीं कर सकी। हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और भारतीय रियासतों में जाना शुरू किया। 

 

भारतीय रियासतों से हो गई थी दुश्मनी

कोर्नेलिया जब कई भारतीय रियासतें में जाने लगी, तो उन्होंने देखा कि वहां पर पर्दा प्रथा का पालन किया जाता है। इसके तहत महिलाओं को बाहर आने की अनुमति नहीं थी। यहां तक की महिलाएं बाहर के किसी व्यक्ति से बात भी नहीं कर सकती थी।

इस दौरान उन्होंने पाया कि कुछ महिलाएं अत्याचार भी सह रही थी। ऐसे में उन्होंने महिलाओं से बात कर पुलिस और अधिकारियों तक उनकी बात पहुंचाई। उन्होंने अपने समय पर ऐसी कई महिलाओं को इंसाफ दिलाया। इस दौरान उनकी कई रियासतों से दुश्मनी भी हो गई थी। क्योंकि, रियासतों को ऐसा लगता था कि वह उनकी संस्कृति में दखल दे रही हैं। 

 

इस तरह बनी पहली महिला वकील 

लंबे समय बाद साल 1919 में अंग्रेजों ने नियमों में बदलाव किया, जिससे महिलाओं का वकालत में आने का रास्ता साफ हुआ। यही वह समय था, जब भारत को अपनी पहली महिला वकील कोर्नेलिया सोराबजी के रूप में मिली।

हालांकि, उस समय भी उनकी मुश्किलें कम नहीं थीं, क्योंकि तब जज पुरुष वकीलों की बात को अधिक तवज्जों दिया करते थे, जबकि महिलाओं को कम तवज्जों मिलती थी। उन्होंने कुछ समय बाद इंग्लैंड की तरफ रूख किया और 1954 में 88 साल की उम्र में अपनी आखिरी सांस ली। 

See also  Jag tog en bild på en familj av främlingar, och en vecka senera fick jag ett meddelande från dem som fick mitt blod att frysa till is.

 

पढ़ेंः भारत में पहली महिला राज्यपाल कौन थी, जानें

Categories: Trends
Source: HIS Education

Rate this post

Leave a Comment