भारत के चंद्रयान-3 मिशन के विक्रम लैंडर के चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने का जश्न भारत सहित पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है. विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग के साथ भारत दक्षिणी ध्रुव पर दस्तक देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है.
साथ ही भारत चंद्रमा पर लैंडिंग करने वाला दुनिया का चौथा देश भी बन गया है. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ऐसा कर चुके है. भारत के इस सफल प्रयास में भारत के कई वैज्ञानिकों का योगदान है. आज हम इनमें से ही एक युवा साइंटिस्ट भरत की कहानी बताने जा रहे है जिन्होंने जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना करते हुए इसरो तक पहुंचे है.
छोटे से शहर की बड़ी प्रतिभा:
एक छोटे से शहर से इसरो तक पहुंचने का सफर बड़ा ही मुश्किल भरा रहा है लेकिन उन्होंने क्षेत्र के लोगों को गौरवान्वित कर दिया है. देश के लिए किये गए उनके इस प्रयास से उनके पिता के. चंद्रमौलेश्वर व उनकी मां के. वनजाझी फूले नहीं समा रहे है. चंद्रयान-3 की टीम में शामिल के भरत ने देश के साथ परिवार के सदस्यों का भी नाम रौशन किया है.
चंद्रयान-3 मिशन में युवा भरत का योगदान:
इसरो के अनुभवी साइंटिस्टों के साथ-साथ देश के युवा साइंटिस्ट भी चंद्रयान-3 मिशन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उसमें छतीसगढ़ के दुर्ग जिले के होनहार भरत का भी अहम रोल है. उन्होंने अपने मेहनत और प्रतिभा के दम पर इसरो में नौकरी प्राप्त की थी.
संघर्षों भरा था भरत की पढ़ाई का सफर:
इस समय के भारत कुमार वर्तमान में इसरो में बतौर मेकेनिकल इंजीनियर जुड़े हुए है. भरत कुमार ने चरोदा बीएमवाय स्थित केंद्रीय विद्यालय से 12वीं तक की शिक्षा प्राप्त की थी. वह शुरू से ही प्रतिभाशाली रहे है, उन्होंने 12वीं में टॉप किया था, जहां उन्होंने फिजिक्स में 99, केमिस्ट्री में 98 और गणित में 99 अंक हासिल किये थे. इसके बार के भरत का दाखिला आईआईटी धनबाद में हुए जहां से उन्होंने मेकेनिकल इंजीनियर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की.
2019 में इसरो में हुआ चयन:
भरत ने आईआईटी धनबाद में मेकेनिकल इंजीनियरिंग में टाप किया और गोल्ड मेडल भी हासिल किया. अंतिम सेमेस्टर की पढ़ाई पूरी होने से पहले ही उनका चयन कैंपस इंटरव्यू के तहत इसरो में हो गया.
कच्चे घर में गुजरा बचपन:
उनका परिवार कच्चे मकान में रहता था. इसरो से जुड़ने के बाद उन्होंने अपना मकान ठीक कराया. उनके परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. उनके इस कठिन सफ़र में रायपुर एवं रायगढ़ के दो परिवारों ने भी उनका सहयोग किया था.
मां चलाती थी टपरीनुमा होटल:
घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उनके माता-पिता जी केबिन में टपरानुमा होटल (ठेला) चलाते थे. जी केबिन भिलाई-चरोदा निगम क्षेत्र में एक श्रमिक बस्ती है. फिर भी आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पिता ने बैंक में गार्ड की नौकरी भी कर ली थी. पिता के गार्ड की नौकरी के बाद उनकी मां अकेले होटल चलाती थी. भरत अपने परिवार में बड़े है उनकी एक छोटी बहन भी है.
इन दो परिवारों ने की मदद:
घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पढ़ाई का खर्च उनके लिये चुनौती बन गया था. इसके बाद भरत और उनके परिवार के लिए दो परिवार देवदूत बनकर आये इसमें से एक रायपुर निवासी रामदास जोगलेकर उनके साढू भाई अरुण ने आर्थिक मदद का हाथ बढ़ाया. उनके अतिरिक्त रायगढ़ के संतराम ने भी उनकी आर्थिक मदद की थी.
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Source: HIS Education